हर समाज में बहुत थोड़े से लोग आम लोगों से बहुत ज़्यादा होशियार होते हैं, अब उनको भी तो अपना केरियर बनाना होता है, अब कोई सियासत का मैदान चुनता है कोई मज़हब का-अपने अपने हिस्से के मूर्ख दोनो को मिल जाते हैं-मूल मंत्र यह है क़ी बजाये अपनी खूबियाँ गिनाने के (जो होती ही नहीं हैं) सामने वाले के ऐब का बखान करो-धर्म से ज़ायदा सेफ फील्ड राजनीति की है उसमें विरोधी को बहुत सोच समझ कर बोलना पड़ता है कहीं राष्ट्र द्रोह का आरोप ना लग जाये